Tuesday 16 September 2008

सहूलियत का दाम

ब्लाग्स ने इंसान की जिंदगी को खुली किताब की तरह बना दिया है कोई भी कही भी बैठकर पढ सकता है जान सकता है कि किसी दूसरे की जिंदगी मे कैसी उठा- पटक का खेल चल रहा है-बशर्ते लोग सच लिखने की हिम्मत करे- जो कि काफी कम होता है- लोग कहते है कि कंप्यूटर का ये युग हमे एक दूसरे से दूर ले जा रहा है लेकिन मेरी सोच इससे ठीक उलट है- मेरा मानना है कि कंप्यूटर के इस युग मे हम पहले से कही ज्यादा नजदीक आ गये है फेसबुक और आर्कुट जैसी सोशल वैबसाइट्स के जरिये हमे मौका मिलता है एक साथ कई सारे लोगो के टच मे रहने का- जरा सोचिये अगर ये नही होते और आपकी मशरूफियत का भी यही आलम होता तो शायद कुछ महीनो मे लोग आपकी शक्ल तक भूल जाते- क्योकि आज हर आदमी अपने काम मे इतना व्यस्त है कि उसे अपने पड़ोसी से हाय-हलो करने तक का वक्त नही-

आज वक्त पहले की तुलना मे काफी बदल गया है- मुझे याद है कि कोई ७ बरस पहले ज्यादातर लोग एसटीडी काल्स पर लंबी बात नही कर पाते थे और आज आलम ये है कि पूरी की पूरी कथा पुराण फोन पर हो जाती है क्योकि अब फोन पर लंबी दूरी की बात न तो पहले जैसी महंगी है और ना कोई ये शिकायत करता है कि आवाज साफ नही आ रही-

अभी कल ही मैं कोई २५ बरस पहले आई फिल्म अर्थ देख रहा था जिसमे कुलभूषण खरबंदा को एसटीडी पर बात करते दिखाया गया वो जितनी जोर से फोन पर गोवा से मुंबई बात कर रहे थे उसे देखकर आज की जैनरेशन तो उन्हे पागल ही समझेगी लेकिन जो लोग पुराने है उन्हे अच्छी तरह से मालुम है कि पहले एस टी डी पर बात करना उतना सुलभ नही था जितना कि आज है-

किसी हद तक फिल्मे देखकर भी हमे एहसास हो जाता है कि पिछले २५ बरसो मे हमने कई सारे बदलाव देखे है- मसलन १५ साल पुरानी फिल्म मे आप रईस से रईस किरदार निभाने वाले किसी भी एक्टर के हाथ मे मोबाइल नही देख सकते और आज आलम ये है कि किसानो से लेकर सब्जी बेचने वाले तक के हाथ मे मोबाइल फोन है- ये शायद मशीनीकरण का ही कमाल है कि अब लंदन - लंदन जैसा दूर नही लगता और ई मेल और चैट के जरिये आपकी बात पलक झपकते ही अमेरिका पहुच जाती है और आपको पहले की तरह अपनी चिठ्ठी पहुचने का इंतजार भी नही करना पड़ता-

कहते है हर कामयाबी की कीमत चुकानी पड़ती है- हर सहूलियत का कुछ न कुछ तो दाम होता ही है- और शायद इतनी सारी सहूलियतो का दाम हम कुछ इसी तरह अदा कर रहे है कि आज किसी भी सोशल साइट्स पर जाते ही आपकी पर्सनल लाइफ खत्म- आप अपने घर मे कैसे रहते है क्या पहनते है सब कुछ सिर्फ आपका नही रह जाता बल्कि एक माउस क्लिक से आप पूरी दुनिया की संपत्ति बन जाते है- और अगर आप खुद किसी सोशल साइट के मैंबर न भी बने लेकिन अगर कोई दूसरा आपकी फोटो मोबाइल से खींच कर कही पेस्ट कर दे तो आपकी हर पोल खुल ही गई समझिये- तो जनाब सभंल कर जब भी आप सड़क पर या पब्लिक प्लेस पर होते है तो ध्यान रहे कि कई सारे मोबाइल आप पर नजर रखे हुए है- एक क्लिक आपसे आपकी पर्सनल लाइफ खींच सकती है-- तो याद रहे जाने अनजाने मे आप अपनी सहूलियत के दाम तो चुकता कर ही रहे है। यही तो है आप की सहूलियत का दाम।

1 comment:

Udan Tashtari said...

स्वागत है आपके ब्लॉगजगत में. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाऐं.

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