Sunday 21 October 2012

नयी पीढी नया खतरा- जरूरी है जानना

सरकार ने अपने नये कंपनी बिल मे कहा है कि देश मे बडा  मुनाफा कमाने वाली कंपनी  अपनी कमाई के दो फीसदी हिस्से को corporate social responsibility के तौर पर खर्च करे । इस नये नियम के तहत एक कंपनी ने चेन्नई मे एक workshop आयोजित करके बच्चो को समझाया कि rain water harvesting कैसे होती है और इसके क्या फायदे होते है।  मुझे ये सरकारी कदम वाकई सराहनीय लगा। आज बच्चो को पढाई के साथ साथ हर उन बातो का ज्ञान देने की जरूरत है जो बदलते वक्त के साथ उनके सामने चुनौतियो के रूप मे सामने आने वाली है। अगर हमारी पिछली दो पीढियो को  rain water harvesting या global warming noise pollution और waste management जैसी प्रणालियो के बारे मे जानकारी दी जाती तो आज हालात और होते लेकिन बदलते वक्त की वजह से नये पैदा होते इन खतरो से कैसे निबटना है ये हमारी नयी पीढी को तो कम से कम जरूर पता होना चाहिये। आज की पीढी इन सारे खतरो को ज्यादा करीब से देखने वाली है क्योकि ये नई पीढी कई सारे नये खतरो के साथ अपनी जिन्दगी शुरू कर रही है यंहा पर मै उन बच्चो की बात कर रहा हू जो अभी स्कूलो मे पढ रहे है।


पहला खतरा है सैलफोन को इस्तेमाल से होने वाले नये मानसिक रोगो को खतरा जिसके बारे मे पिछली पीढी को जानने की जरूरत नही थी क्योकि तब सैल फोन नही होते थे। दूसरा मुद्दा है global warming का जिसके बारे मे पिछली पीढी मे कोई जागरूकता नही थी और आजादी के बाद विकास के नाम पर कई जंगल स्वाहा किये गये और नतीजा ये कि आज देश के किसी भी हिस्से का मौसम कोई भी करवट ले लेता है साथ ही शहरी तापमान भी तेजी से बढ रहा है। तीसरा नया खतरा है  waste management का आज देश की जनसंख्या तेजी से बढने के बाद ( जिसमे illegal migrants Bangladeshi, Pakistani and Nepali शामिल है) कचरे की मात्रा २० गुने से भी ज्यादा बढी है यह भी एक नया खतरा है ऐसे मे waste management  के बारे मे बच्चो को बताना जरूरी है। चौथा नया खतरा ध्वनि प्रदूषण का है हमे अपने बच्चो को बताना होगा कि शान्ति की हमारे जीवन मे क्या अहमियत है। शान्ति न केवल हमारे मानसिक स्वास्थय के लिये आवश्यक है बल्कि हमारे शरीर को ऊर्जावान बनाये रखने और किसी भी काम मे एकाग्रचित होने के लिये सबसे ज्यादा जरूरी है।

पांचवा खतरा जो नया नही है लेकिन हाल के कुछ सालो मे तेजी से बढा है वो है वायु प्रदूषण का जिसकी वजह है सड़को पर तेजी से बढने वाली कारे, स्कूटर और मोटर साइकल। शायद अब वक्त आ गया है जब कि हमे बच्चो को ये कहना होगा कि बचपन मे स्कूल जाने के लिये दी गई साइकिले अब उन्हे बड़े होने के बाद भी इस्तेमाल करनी चाहिये और पैट्रोल डीजल से चलने वाली गाडियो से दूर ही रहना चाहिये तभी वो अपनी संास लेने लायक वातावरण रख पायेगे।

खतरे और भी है लेकिन एक खतरा जो सबसे पुराना है जिस पर हमारी पिछली ४ पीढिया बिल्कुल ध्यान नही दे पाई और जो सारे खतरो की जड़ है वो है जनसंख्या का तेजी से बढना। अगर हम अपनी जनसंख्या पर काबू कर पाते जो सिर्फ और सिर्फ हमारे ही हाथ मे था तो ऊपर लिखे कई खतरो का स्तर या तो काफी कम होता या फिर ना के बराबर होता। अफसोस की बात है कि तीस से साठ के दशक के बीच हुई हिन्दुस्तान की ज्यादातर शादिया मानो सिर्फ बच्चे पैदा करने के लिये ही की गई । उन दिनो हर घर मे तीन से लेकर १२ बच्चे तक होते थे नतीजा ये कि आज देश की ट्रेन मे सीट , बस मे खड़े होने की जगह , फुटपाथ पर पांव रखने की जगह, स्कूल मे दाखिला, शहर मे रहने को घर और अस्पतालो मे बिस्तर नही मिलते। ऐसे मे वृद्ध लोगो से ये सुनना कि हमारे जमाने मे ऐसा नही था जले पर नमक छिड़कने का काम करता है क्योकि अगर उस पीढी ने जनसंख्या पर काबू पाया होता और क्रिकेट टीम की तरह बच्चे पैदा न किये होते तो आज ये स्थिति नही होती।

खैर जो हुआ सो हुआ लेकिन अब जो हमारे हाथ मे है वो ये कि हम अपनी अगली पीढी को नये युग के इन नये खतरो से निबटने के लिये जागरूक जरूर करे- ऐसे मे कुछ corporate companies का workshop लगाकर social responsibility पूरा करना एक अच्छा कदम है और इस तरह की शुरूआत हम अपने पास पड़ोस और बिल्डिग के बच्चो को किसी छुट्टी के दिन साथ बैठाकर भी कर सकते है। हम उन्हे खेल खेल मे इन सारी बातो के बारे मे बता सकते है। ये नयी सीख उनके आने वाले कल के लिये काफी मददगार साबित होगी और अगर हम ये ना कर पाये तो हमारी हार होगी। नये खतरो से निबटने के लिये नयी पीढी को तैयार करना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है और जिम्मेदारी से भागना कायरो का काम है। 

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