Tuesday, 6 January 2009

ये जग मिथ्या...

पिछले दिनो किसी से मुलाकात हुई बातो का सिलसिला निकला तो जिक्र आध्यात्म और भगवान तक पहुच गया...सामने वाले ने तर्क ये रखा कि हम सब किसी की कल्पना है मतलब जिसको हम भगवान मानते है उसी भगवान की हम सब एक इमेजिनेशन है.....इसीलिए कहा भी जाता है कि ये जग मिथ्या है... लेकिन सवाल वाकई गंभीर है कि क्या वाकई ये एक मिथ्या है या मिथ्या का भी भ्रम है ये दुनिया... अगर ये असलियत नही तो फिर असलियत क्या है और अगर असलियत यही है तो हम इसे मिथ्या क्यो कहते है...सवाल भले ही मुर्गी पहले आई या अंडा पहले वाला सा लगे लेकिन दिमाग को घुमाने वाला है जरूर कि बिना किसी डोर के उस ऊपर वाले ने हम सबको कठपुतली बना कर रखा है...हमे लगता है हम जो चाहे सो कर सकते है लेकिन जनाब कई बार आप जो करने चलते है उससे भी अच्छा हो जाता है और कई बार जो करना चाहते है लाख कोशिशो के बावजूद भी नही कर पाते तो फिर इसकी सफाई कौन देगा...

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