बचपन मे मेरे पड़ोसी रहे गुप्ता अंकल कभी शराब नही पीते थे लेकिन होली के दिन ना जाने सुबह से उन्हे क्या हो जाता था वो सुबह से ही भंग चढाने के लिये तैयार हो जाते थे। अगले दिन सुबह से फिर वही कभी शराब न पीने की बात करना। होली के दिन यकीन करना मुश्किल होता था कि ये वही गुप्ता जी है जो साल के बाकी के दिन नशा न करने की हिदायते देते रहते है। एक दिन जब मै थोड़ा बड़ा हुआ तो होली के अगले दिन मैने बड़ी हिम्मत करके उनसे ये सवाल किया कि गुप्ता जी ये होली के दिन आप कैसे भंग पीने लग जाते है जबकि साल के बाकी के दिनो मे आप नशे से कोसो दूर रहते है तो मेरी इस बात का जवाब जो उन्होने दिया वो काफी चौकाने वाला था - वो बोले बेटा उस दिन तो माहौल ही ऐसा होता है तो कुछ समझे आप ये माहौल है जो किसी को भी बदलने के लिये काफी होता है।
वो माहौल ही है जो सड़क पर थूकने वाले लोगो को किसी साफ सुथरे मॉल में थूकने से रोकता है। तो क्या देश की सड़को पर फैली गंदगी के लिये माहौल को जिम्मेदार माना जा सकता है तो जवाब मिलेगा एक हद तक- मेरे कई ऐसे मित्र है जो जब हिन्दुस्तान मे होते है तो बडे बेढंगे ढंग से बात करते है- सड़क पर पास पड़ोस मे गंदगी भी फैला देते है लेकिन जैसे ही ये किसी पश्चिमी देश की यात्रा पर जाते है तो इनका बात करने का ढंग- साफ सफाई रखने का तरीका- देखकर यकीन करना मुश्किल हो जाता है कि ये वही है जो अपने घर पर अपने देश मे गंदगी फैलाते रहते है- इनसे भी अगर पूछ लो तो जवाब मिलेगा- "यार वंहा का माहौल ही ऐसा है कि हमे थोड़ा संभल कर साफ सफाई से रहना पडता है" समझे आप फिर माहौल की बात- तो अगर मेरे दोस्त माहौल इतना अहम रोल अदा करता है कि आप अपनी आदतो को माहौल के हिसाब से बदल पाते है। गौर कीजियेगा यंहा मैं माहौल के उस गुण की बात कर रहा हूँ जो आपकी आदत को भी बदलवाने की ताकत रखता है (आदतो के बारे मे कहा जाता है कि जो बदली नही जा सकती वही आदत होती है) तो कितनी ताकत होती है इस माहौल मे।
अगर माहौल के बारे मे ऊपर लिखे गये तर्क ठीक है तो फिर ये भी जान लेना जरूरी है कि माहौल बना कर किसी भी बुराई से निजात पाई जा सकती है क्योकि बुराईया हमारी आदतो मे ही तो होती है फिर चाहे देर तक सोने की आदत हो, नशा करने की आदत हो, कामचोरी की आदत हो, झूठ बोलने की आदत है, भ्रष्ट होने की आदत हो ये सब आदते ही तो हमारे देश का बेड़ा गर्क कर रही है- मतलब अगर माहौल बदल दिया जाये तो ये सब बुराईया दूर भगाई जा सकती है।
देश मे अन्ना के आंदोलन ने, अरविंद केजरी वाल के खुलासो ने या फिर बाबा रामदेव के योग ने क्या किया माहौल ही तो बनाया और देखिये माहौल ने कैसे अपना असर भी दिखाया। भले छोटे स्तर से हुआ हो लेकिन लोग लोकपाल बिल के बारे मे जानने लगे ,बात करने लगे, अनुलोम विलोम, कपाल भांति और प्राणायाम घर घर मे बोले जाने वाले शब्द बन गये लोग इनके बारे मे जानने लगे। विज्ञापनो की दुनिया (ad world) भी अपना प्रोडक्ट बेचने के लिये क्या करती है माहौल ही तो बनाती है जैसा प्रोडक्ट वैसा माहौल- "जो अपनी बीवी से करते है प्यार वो प्रैस्टीज कुकर से कैसे करे इंकार" मानो रेडियो टी वी पर बार बार इस बात का प्रचार किया जा रहा हो- माहौल बनाया जा रहा हो कि दुनिया का हर वो पति बेकार है जिसके घर प्रैस्टिज का कुकर नही है- ये सब एक माहौल बनाने की प्रक्रिया का ही हिस्सा है। नवरात्र मे लोग मांस खाना छोड देते है क्योकि ऐसा माहौल बना दिया जाता है।
तो अगली बार अगर आप किसी भी बुराई से निजात पाना चाहे, कोई आदत बदलना चाहे तो बस आपको इतना करना है कि माहौल बनाना है।
वो माहौल ही है जो सड़क पर थूकने वाले लोगो को किसी साफ सुथरे मॉल में थूकने से रोकता है। तो क्या देश की सड़को पर फैली गंदगी के लिये माहौल को जिम्मेदार माना जा सकता है तो जवाब मिलेगा एक हद तक- मेरे कई ऐसे मित्र है जो जब हिन्दुस्तान मे होते है तो बडे बेढंगे ढंग से बात करते है- सड़क पर पास पड़ोस मे गंदगी भी फैला देते है लेकिन जैसे ही ये किसी पश्चिमी देश की यात्रा पर जाते है तो इनका बात करने का ढंग- साफ सफाई रखने का तरीका- देखकर यकीन करना मुश्किल हो जाता है कि ये वही है जो अपने घर पर अपने देश मे गंदगी फैलाते रहते है- इनसे भी अगर पूछ लो तो जवाब मिलेगा- "यार वंहा का माहौल ही ऐसा है कि हमे थोड़ा संभल कर साफ सफाई से रहना पडता है" समझे आप फिर माहौल की बात- तो अगर मेरे दोस्त माहौल इतना अहम रोल अदा करता है कि आप अपनी आदतो को माहौल के हिसाब से बदल पाते है। गौर कीजियेगा यंहा मैं माहौल के उस गुण की बात कर रहा हूँ जो आपकी आदत को भी बदलवाने की ताकत रखता है (आदतो के बारे मे कहा जाता है कि जो बदली नही जा सकती वही आदत होती है) तो कितनी ताकत होती है इस माहौल मे।
अगर माहौल के बारे मे ऊपर लिखे गये तर्क ठीक है तो फिर ये भी जान लेना जरूरी है कि माहौल बना कर किसी भी बुराई से निजात पाई जा सकती है क्योकि बुराईया हमारी आदतो मे ही तो होती है फिर चाहे देर तक सोने की आदत हो, नशा करने की आदत हो, कामचोरी की आदत हो, झूठ बोलने की आदत है, भ्रष्ट होने की आदत हो ये सब आदते ही तो हमारे देश का बेड़ा गर्क कर रही है- मतलब अगर माहौल बदल दिया जाये तो ये सब बुराईया दूर भगाई जा सकती है।
देश मे अन्ना के आंदोलन ने, अरविंद केजरी वाल के खुलासो ने या फिर बाबा रामदेव के योग ने क्या किया माहौल ही तो बनाया और देखिये माहौल ने कैसे अपना असर भी दिखाया। भले छोटे स्तर से हुआ हो लेकिन लोग लोकपाल बिल के बारे मे जानने लगे ,बात करने लगे, अनुलोम विलोम, कपाल भांति और प्राणायाम घर घर मे बोले जाने वाले शब्द बन गये लोग इनके बारे मे जानने लगे। विज्ञापनो की दुनिया (ad world) भी अपना प्रोडक्ट बेचने के लिये क्या करती है माहौल ही तो बनाती है जैसा प्रोडक्ट वैसा माहौल- "जो अपनी बीवी से करते है प्यार वो प्रैस्टीज कुकर से कैसे करे इंकार" मानो रेडियो टी वी पर बार बार इस बात का प्रचार किया जा रहा हो- माहौल बनाया जा रहा हो कि दुनिया का हर वो पति बेकार है जिसके घर प्रैस्टिज का कुकर नही है- ये सब एक माहौल बनाने की प्रक्रिया का ही हिस्सा है। नवरात्र मे लोग मांस खाना छोड देते है क्योकि ऐसा माहौल बना दिया जाता है।
तो अगली बार अगर आप किसी भी बुराई से निजात पाना चाहे, कोई आदत बदलना चाहे तो बस आपको इतना करना है कि माहौल बनाना है।
1 comment:
मुझे लोगो ने बताया कि वो मेरे पोस्ट पर कमेंट नही कर पा रहे है मैने गूगल को इस बारे मे सूचित किया है तब तक आप अपने कमेंन्ट्स ujjawal.trivedi@gmail.com पर भेज सकते है।
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