आज सुबह मैने अपने पड़ोसी को देखा कि वो अपने 10 साल के बच्चे को अंग्रेजी मे कुछ रटा रही थी- उनकी भाषा सुनकर एहसास हो गया कि अग्रेजी से इनका दूर का नाता ही रहा है ऐसे मे बच्चा भी बस उनके मुंह से निकले कुछ शब्दो को सिर्फ दोहरा रहा था समझ उसके भी कुछ नही आ रहा था ठीक मेरी तरह- इतनी देर मे उनकी लिफ्ट आ गई और वो दोनो माँ बेटे मेरी नजरो से ओझल हो गये लेकिन मै सोचता रह गया कि अगर इस बच्चे ने अग्रेजी मे बोली गई इन लाइनो को रट कर अपनी परीक्षा मे इसे लिख दिया तो क्या बच्चे को स्कूल भेजने का असली मकसद पूरा हो पायेगा। क्या ये बच्चा उन बातो उन तर्को को समझ पायेगा जिन पर हम या हमारे आस पास की वस्तुए चल रही है। क्या सिर्फ रटन्त विद्या हमारे आने वाले कल के लिये खतरनाक नही है।
इस बच्चे की तरह की पढने वाले बच्चे जब कल किसी के माँ बाप बनेगे तो वो उनको क्या देगे और अगर आज हम इन बच्चो को मिलने वाली शिक्षा के स्तर और तरीके को बदल नही पाये तो क्या हम बडे होने की या तजुर्बेकार होने की अपनी नैतिक जिम्मेदारी को निभा रहे है। क्या हम सब की कोई जिम्मेदारी नही बनती कि हमारे आस पास जो गलत हो रहा हो उसे बदले। अगर आप मुझसे पूछे कि आस पास जो चीज़ धडल्ले से गलत हो रही है वो क्या है तो मेरी जुबान पर सबसे पहला नाम सबसे पहला गुनाहगार होगी हमारी शिक्षा व्यवस्था जो हमारे आज और कल ही नही बल्कि आने वाली कई पीढियो का नुकसान करती चली जा रही है और हम चुपचाप देख रहे है।
मेरे आस पास कई लोग है जो मानते है कि हमारा school system बदल देना चाहिये लेकिन बदलाव करने से पहले इसकी कमिया जाननी जरूरी है- सबसे बडी बात जो मेरी समझ से बाहर है कि हमने शिक्षा को इतना मंहगा क्यो बना दिया है और अगर मंहगा बनाने मे मेहनत की है तो फिर उसे practical बनाना क्यो भूल गये है। सिर्फ Right to education का कानून लाने से कुछ नही होगा education को रटन्त ज्ञान से अलग करना सबसे ज्यादा जरूरी है। हम खुश होते है कि हमारे बच्चे को फलां फलां कहानी या कविता याद है वो calculation कर लेता है definitions लिख देता है लेकिन इतना कर लेने के बावजूद भी अगर उस बच्चे को practical ज्ञान नही है तो हमने उसकी आँखो पर पट्टी बांध रखी है हम उसे शाबाशी दे देते है कि उसने जितना रटा था वो सब लिख कर आ गया और उसके नंबर भी अच्छे आ गये लेकिन क्या जो वो रट रहा है वो उसको समझ आया जवाब मिलेगा पता नही- और ये पता नही वाला जवाब आपके उस बच्चे को मीठे जहर की तरह मार रहा है जिसका एहसास आपको नही है।
आपके बच्चे के टीचर को लगता है कि अगर वो इस सवाल का जवाब ये लिख देगा तो उसे पूरे नंबर मिलेगे लेकिन बच्चे को किसी सवाल का सही जवाब पता होने से ज्यादा जरूरी ये है कि उसे ये पता हो कि उसी सवाल के कितने जवाब हो सकते है जो गलत है और किस वजह से गलत है। अक्सर हम ये तो बता देते है कि सही क्या है लेकिन ये नही बताते कि गलत- क्यो गलत है और सही क्यो सही है और अगर गलत को सही कहा जाये तो क्या नुकसान हो सकते है इसीलिये हम अधूरा ज्ञान बांटते है।
अधूरा ज्ञान इसलिये भी खतरनाक हो सकता है क्योकि यह एक गलतफहमी देता है। जिस बच्चे को आपने कुछ रटा दिया उसे रटा हुई ज्ञान लिख कर नंबर मिल गये और उसे इस बात की गलतफहमी हो गई कि मुझे सब पता है बस यही गलतफहमी उसके लिये नुकसान दायक है। मसलन अगर हमे कुछ जानने का भ्रम हो जाये तो हम निश्चिन्त होने लगते है कि जिस तरह का ज्ञान हमे मिला है उसे ही तो ज्ञान कहते है- (बच्चे के सन्दर्भ मे लिख रहा हूँ) मतलब कितना आसान है रटना है ऐसा बच्चो को लगता है पर उन्हे ये पता नही कि रटने से आसान है समझना तभी आसान होता है जब आप थोड़ा सा दिमाग लगाने मे यकीन रखते हो- जानने की चाह रखते हो लेकिन अगर आपको सिर्फ रटा कर पास करने का दूसरा रास्ता दिखा दिया गया है तो शायद यंहा मै जो लिख रहा हूँ वो उन बच्चो के माँ बाप को समझ नही आयेगा।
मुझे लगता है हम सबने अपनी आँखे बन्द करके बच्चो की पढाई को गंभीरता से लेना छोड़ दिया है। हमारा पूरा ध्यान सिर्फ बच्चो को किसी तरह अच्छे नंबर से पास करवा कर किसी नौकरी या competition के लिये तैयार करना भर रह गया है। हम पूरी तरह से ये मान चुके है कि किसी तरह ज्यादा नंबरो वाला certificate लेना कामयाब जिन्दगी की गारंटी लेकर आता है लेकिन अगर ऐसा होता तो देश मे डिग्री वाले तथाकथित योग्य (काबिल) लोग बेरोजगार ना घूम रहे होते। हमारी शिक्षा पद्धति की सबसे बड़ी खामी है कि ये आपको किसी का नौकर बनने लायक ही तालीम देती है- आप स्वयं का कोई काम किसी नये सिरे से शुरू कर पाये- या फिर आप अपनी किसी प्रतिभा का विकास करके उसे अपना पेशा बना पाये इस तरह की व्यवस्था ना के बराबर है।
फिलहाल देश की सरकार शिक्षा व्यवस्था को लेकर क्या करती है उससे पहले कम से कम हम इतना तो कर ही सकते है कि अपनी तरफ से जो गलतिया हो रही है उन्हे ना होने दे। जरूरी है कि हम अपने बच्चो के अंदर गलत आदते परपने ही ना दे जैसे रटने की आदत, किसी तरह (चाहे नकल करके) ज्यादा नंबर लाने की मानसिकता या फिर किसी भी बात को सिर्फ book मे लिखा है कहकर मान जाने की आदतो को जरूर बदला जा सकता है। हमे बच्चो के अंदर तर्क करने की ललक पैदा करनी होगी और इस बात को बढावा देना होगा कि वो किसी भी बात को सिर्फ बिना किसी logic लगाये ना मान ले। इससे ना सिर्फ उन्हे अपने किसी भी विषय की पूरी जानकारी होगी बल्कि इस बात की पूरी समझ हो जायेगी कि इस संसार मे बिना तर्क के कुछ भी नही होता।
इतिहास गवाह है कि इतिहास मे अमर वही हुए है जिन्होने हर पहलू पर अपना तर्क लगाया है। दूसरो की कही सुनी पर आँख कान बन्द करके मान लेने की आदत आपसे कभी कुछ नया नही करवा सकती- याद रहे इस दुनिया मे आने के पीछे हम सबका कोई ना कोई मकसद है । इस मकसद को आप अपनी कोशिशो से हासिल किये गये तर्क संगत ज्ञान से ही पूरा कर सकते है इसलिये तर्क लगाने की आदत अपने बच्चो मे डालिये।