पहले कहीं पढा था कि मनुष्य
सौन्दर्योपासक (सुंदरता की पूजा करने वाला) प्राणी है मतलब सुन्दरता की पूजा करता
है जो भी अच्छा लगे सुन्दर लगे उसे पसंद करता है। फिर जानने की कोशिश की कि
सुन्दरता है क्या बहुत ढूंढा कवियो की कविताओ मे मिसाले तो कई मिली पर सटीक उत्तर
नही मिला एक ऐसी बात जो सटीक जवाब दे सके वो किसी के पास नही मिली। फिर अपने अनुभव
से एक नयी परिभाषा बनाई जो कई मायनो मे सही लगी - सन्तुलन ही सुंदरता है मतलब अगर
कुछ सन्तुलित है तो वो सुन्दर है किसी भी चीज का सन्तुलित होना ही सुंदरता का सबसे
बड़ा पैमाना है मान लो किसी की एक आँख छोटी दूसरी बडी है तो वो सुन्दर नही है
क्योकि वंहा सन्तुलन नही है एक हाथ छोटा दूसरा बड़ा हो तो भी सुन्दरता नही होती। दिन
मे काम हो रात मे आराम तो सन्तुलन हो जाता है इसी से तो जीवन मे सुन्दरता आ जाती
है सोचो दिन रात काम हो तो जीवन की सुन्दरता तो चली जायेगी ना । मै आपको बता दूं
कि यंहा किसी शरीर की सुंदरता की बात नही हो रही बल्कि बात हो रही है उस सुंदरता
की जिसे हम जीना चाहते है जिसे हर पल महसूस करना चाहते है वही सुंदरता जो हम सामने
वाले के दिल मे देखना चाहते है फिर चाहे वो काम मे हो घर मे हो बाहर हो या हमारे
आस पास। कहने का मतलब है कि सन्तुलन जरूरी है हर काम मे जीवन के हर पहलू में। तभी
तो वो सुंदरता आयेगी जिसका हम सब हर पल इंतजार करते है।
कही ये भी पढा था कि हमारे
हाथो की उंगलिया बराबर इसीलिये नही होती जिससे कि वो हाथ को बेहतर संतुलन दे
पाये...बराबर होती तो हमारे हाथ की मुठ्ठी की पकड़ उतनी सही नही बनती जितनी कि
उंगलियो के अलग अलग आकार का होने से बनती है। कई बार दिखने मे अलग अलग दिखना भी
असली सुंदरता के लिये जरूरी होता है- तभी तो दुनिया मे अलग अलग तरह के पहाड़,
नदिया, झरने, पक्षी और देश है। विविधता भी तो एक तरह का सन्तुलन है एक तरह की
सुंदरता है। यही विविधता तो हमे आकर्षित करती है या कहे बांध कर रखती है।
ये भी एक तरह की सुंदरता है
कि हम सब देखने मे एक दूसरे से अलग है तभी तो तरह तरह के चेहरे कद काठी इस दुनिया
को देखने लायक बनाते है- कही पहाड तो कही खाई कही समुद्र तो कंही झरने इस दुनिया
को बनाने वाले ने प्रकृति को सन्तुलित करने की या फिर ये कहे कि सही मायनो मे
सुंदर बनाने की पूरी कोशिश की है- सुंदरता तो सन्तुलन मे ही है ना तभी तो गर्मी के
मौसम मे पहाडो पर जाना और सर्दी के मौसम मे गर्म धूप सेंकना अच्छा लगता है क्योकि
यही तो हमारा सन्तुलन बनाता है।
हम सबकी उंगलियो के निशान
आपस मे नही मिलते ये भी किसी सुंदरता से क्या कम है कि दिन उजले और रात काली होती
है सोचो सिर्फ रात ही रहे तो या फिर सिर्फ दिन ही रहे तो...ऋतुओ का बदलना सबको
सन्तुलित करता है...लोग काम से अक्सर ब्रेक लेकर कहीं चले जाते है घूमने अपने
रोजाना के काम से अलग कही दूर ऐसी जगह जंहा वो रोज ना जाते हो...ये भी एक सन्तुलन
पैदा करता है..। अगली बार जब भी आपको कही कोई सुंदरता दिखाई दे तो यही समझियेगा कि
ये सन्तुलित है तभी तो सुंदर लग रही है।
3 comments:
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