दोस्तो क्या आपने आमिर खान की फिल्म थ्री ईडियेट्स देख ली है अगर नही तो जरूर देखिये इसी संडे थोड़ी सी फुर्सत निकाल कर क्योकि कुछ काम बिना फायदा देखे दिल को खुश करने के लिए भी करने चाहिये। इस फिल्म को देखने के बाद शायद ही कोई होगा जिसका जिंदगी को रोजमर्रा की तरह देखने का नजरिया ना बदले..वाकई ये फिल्म आपको सोचने के िलये मजबूर कर
देगी कि रोजाना जो काम आप ये सोचकर करते है कि ये आपका बहुत जरूरी काम है दरअसल वो ही काम कई बार एक ऐसा फालतू काम होता है जो आपको
आपके असल मकसद से इतनी दूर ले जाता है कि आप यही भूल जाते है कि आपकी असली पहचान क्या है।
देगी कि रोजाना जो काम आप ये सोचकर करते है कि ये आपका बहुत जरूरी काम है दरअसल वो ही काम कई बार एक ऐसा फालतू काम होता है जो आपको
आपके असल मकसद से इतनी दूर ले जाता है कि आप यही भूल जाते है कि आपकी असली पहचान क्या है।
पढाई इसलिये करनी है क्योकि समाज में पढने के बाद ही अच्छी नौकरी मिलेगी, अच्छी नौकरी होगी तभी अच्छी शादी होगी फिर बच्चे होंगे फिर उन्हे भी अच्छी तालीम और सुविधाये दिलाने के लिए खूब मेहनत करके नौकरी मे तरक्की पानी होगी जिससे कि और ज्यादा पैसा आये आम तौर पर लोगो की सोच यही होती है लेकिन मेरे भाई जरा सोचो कि क्या वाकई आप अपने स्टेटस सिंबल को बनाये रखने और अपने बच्चो को पैदा करके उनको ऊची तालीम दिलाने के लिए ही पैदा हुए हो तो फिर आपमे और आपके पड़ोसी मे क्या फर्क है। बस इतना ही कि वो डाक्टरी करके यही काम करता है और आप इसी काम को अंजाम देने के लिए इंजीनियर बनकर दिन भर सिर खपाते है।
क्या वाकई यही जिंदंगी है...क्या ऐसा नही हो सकता कि कुछ काम आप ये बिना सोचे करे कि इसको करने से आपको कितना पैसा मिलेगा...मसलन मेरे लिए लिखना शौक है भले पैसा न मिले पर सुकून मिलता है उसी तरह हो सकता है आपको ये सुकून पतंग उड़ाने..मछली पकड़ने...साइकिल चलाने या फिर स्विमिंग और पेंटिग करने मे आता हो लेकिन आप उसे बेकार का या फिर खाली वक्त का काम समझ कर जिंदगी भर टालते रहते है और जब फुर्सत मिलती है तो आपके हाथ पैर या तो उस काम (शौक) को करने के लायक नही रहते या फिर आप भूल ही जाते है कि आपका वो शौक आखिर था क्या...
मतलब आप उन जरूरी काम को करते करते अपने उस मकसद उस खुशी देने वाले अपने शौक को ऐसे भुला देते है मानो वो आपका नही पड़ोसी का काम है....
पहले तो हम जीना सीखते नही फिर कहते है कि क्या जीना है ये जीना भी कोई जीना है..मेरे भाई इसीलिये आमिर खान के कैरेक्टर रैंचो की मानो जीना सीख लो नही सीखे तो पूरी जिंदगी सजा की तरह काट कर यही बोलोगे कि अब बुढापे में थकान होने लगी है थकान क्यो न हो बेकार का काम करने मे थकान ही होती है शौक का काम करने मे थकान नही होती यकीन न हो तो दो पल के लिए खुद से पूछना कि तुमको क्या पसंद है और फिर वही काम कुछ घंटे करना...मुझे यकीन है आप ८० बरस के भी क्यो न हो आपको थकान नही होगी..
इससे पहले कि जिंदगी छिन जाये हमे तुम्हे और सबको जीना सीखना होगा।
1 comment:
देख चुके और आनन्द उठाया.
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