Friday, 1 July 2011

बदल गया टी वी

आज से 15 साल पहले गोविंदा करिश्मा कपूर स्टारर फिल्म खुद्दार मे एक गाना आया था जिसके बोल थे " सैक्सी सैक्सी सैक्सी मुझे लोग बोले " उस वक्त लोग अपने बच्चो को ये गाना सुनने नही देते थे क्योकि बच्चे अपने मम्मी पापा से गाना सुनने के बाद सैक्सी का मतलब पूछा करते थे लेकिन आज ऐसा नही होता आज का बच्चा सैक्सी का मतलब नही पूछता क्योकि सैक्सी का मतलब उसे पहले से ही पता है। ये सारी मेहरबानी हमारी टीवी सस्कृति की है जिसने हमारी सोच समझ सब बदल कर रख दी है। ये दशक टीवी देखने के कल्चर मे एक नया शब्द लेकर आया जिसे हम रियेलिटी शो के नाम से जानते है । रियेलिटी शो के नाम पर हमने पश्चिमी देशो से सीखा टी वी पर करोडो रूपये जीतना , शादी करना, एक ही घर मे रह कर लड़ना झगड़ना प्यार करना, बच्चो को पालना, गाने या डास का कंपटीशन करना, डेटिग करना रोमांस करना- ये सारी वो बाते है जो हर किसी की जिंदगी का हिस्सा होती है लेकिन टी वी कैमरे ने ये सारी रियल बाते हमे कुछ ऐसे दिखाई कि हमने उन्हे रियेलिटी शो का नाम दे दिया। इन सारी बातो को हम देख चुके है अब इंतजार है तो बस कुछ नया देखने का, नयी पीढी भले ही नये के रोमांच मे उछल रही हो पर पुरानी पर तो इस जाते हुए दशक का रोमांच ही ज्यादा भारी पड़ गया। आज जब बोल्ड सीन वाले शो को देर रात दिखाये जाने की बात हो रही है तो सोचना जरूरी हो जाता है कि क्या अगले दशक मे बच्चे रात के वक्त टी वी नही देखेगे या फिर एडल्ट फिल्मो की तरह एडल्ट टी वी चैनल्स का भी अपना अलग बाजार होगा। हो सकता है आपके डीटीएच सर्विस वाले आपको एडल्ट चैनल का एक अलग पैक पेश कर दे जिससे कि लोग खुद ही फैसला ले कि वो एडल्ट शो वाले चैनल देखना चाहते है या नही।

पश्चिमी देशो की देखा देखी अपने शरीर से कपडे कम करने और नकल करके खुद को बड़ा समझने का ये चलन अगले दशक भी जारी रहेगा। इस बात के संकेत इसी दशके के जाते हुए साल के आखिरी महीनो मे मिल गये जब बिग बास जैसे रियेलिटी शो मे अश्लीलता की सारी हदे पार हो गई और हमारे देश के कानून ने उस शो पर प्रतिबंध लगाने की जगह उसे समय की सीमाओ मे बांधने का फरमान जारी कर दिया ये सरकारी फरमान इस बात पर पक्की मुहर साबित हुआ कि आने वाले दशक मे ऐसे प्रसारणो को सरकारी संरक्षण भी मिलने वाला है। लिहाजा आप भी तैयार हो जाइये खुलते कपड़ो और बंद कमरे के पीछे झांकने वाले कैमरो के काले कारनामे देखने के लिये। एक रियेलिटी शो मे शादी से लेकर सुहाग रात का जो ड्रामा खेला गया वो अपने आप मे समाज की खुली सोच का सबसे बड़ा सबूत है। कभी हर छोटी बड़ी बात को हौवा समझने वाले हमारे समाज के लिये अब खुलापन कोई हैरत की वस्तु नही है। आटो रिक्शा चलाने वाले की बेटी भले ही मिनी स्कर्ट ना पहने पर वो अपने रिक्शा मे बैठने वाली लड़कियो के कम होते कपड़ो पर आश्चर्य चकित नही होता उसे पता है आज की पीढी टी वी से प्रेरित है और वो सबकुछ जो टी वी पर दिखाया जाता है उसे हम सब अच्छा ही मानते है। क्या आज से 5 साल पहले आप अंदाजा लगा सकते थे कि एक प्रेमिका अपने प्रेमी के लायलिटी टेस्ट के लिये टीवी कैमरो का सहारा लेगी- क्या कोई सोच सकता था कि शादी जैसे पवित्र बंधन मे बंधा कोई पति अपनी पत्नी के चरित्र की सच्चाई पता लगाने के लिये किसी टी वी चैनल में सपंर्क करेगा- शायद नही 5 साल पहले तक ये सब हमारे लिये हैरानी की बाते थी लेकिन आज ये सब हमारे मनोरंजन का विषय है। इमोशनल अत्याचार के नाम पर जिस तरह हम अपने रिश्तो का माखौल उड़ते टी वी पर देखते है वो वाकई हैरान कर देने वाला है लेकिन जरा सोचिये कि जो पीढी 10-12 साल की उम्र से ये सब देखकर बड़ी हो रही है वो अगले दशक मे किस तरह का टीवी देखना पसंद करेगी।


अभी कुछ ही दिन पहले मैने अखबार मे एक विज्ञापन देखा जिसमे एक टी वी चैनल के लांचिग का जिक्र था । उसमे लिखा था कि अमेरिका मे जो हाल ही मे रियेलिटी शो खत्म हुए है वो सारे शो के हिन्दी वर्जन आप इस चैनल पर देख सकते है। इशारा साफ है ये चैनल अब आपके घर मे घुस कर अमेरिकन कल्चर आपको परोसने वाले है और यही होगा इस दशक मे टी वी का बदलता चेहरा। विदेशी फिल्मे तो नब्बे के दशक मे ही हमारे सिनेमा घरो मे दिखाई देने लगी थी - उन दिनो ज्यूरासिक पार्क, स्पीड और टाइटैनिक जैसी फिल्मे हिन्दी मे डब होकर आया करती थी और अब कुछ वैसा ही होगा जब अमेरिका मे चल रहे रियेलिटी शो को हिन्दी मे डब करके हमारे गांवो शहरो मे दिखाया जायेगा। आज देश के हाई वे पर ज्यादातर मल्टीनेशनल ब्रांड्स के आउटलेट्स और फूड ज्वाइंट्स है और ये हाई वे हमारे गांवो से होकर गुजरते है और यही वजह है कि हमारे छोटे शहरो, कस्बो और गावो मे रहने वाली आबादी भी अब बड़े शहरो और मैट्रो मे रहने वाले लोगो की तरह सब कुछ देखते समझते है। डी टी एच सर्विस ने अब आपको टीवी देखने के मामले मे अपनी मर्जी का मालिक बना दिया है। आपकी खुली सोच का सम्मान हो रहा है टीवी के दर्शक को अब कोई बेवकूफ नही बना सकता यही वजह है कि जब एक चैनल सलमान खान को किसी टाइम स्लाट मे उतारता है तो उसी वक्त दूसरे चैनल को मुकाबला करने के लिये अमिताभ बच्चन का सहारा लेना पड़ता है और तीसरा खिलाड़ी कुमार अक्षय के किचन के साथ अपने करछी बेलन तैयार रखता है- ये सब किसके लिये सिर्फ पहले से जागरूक हुए दर्शको के लिये ही तो है।

नयी पीढी को बदलते टी वी कल्चर ने पहले से ज्यादा सजग, समझदार और तेज बना दिया है। आज सबसे मुश्किल काम है दर्शको को अपने चैनल से चिपका कर रखना। टीवी चैनल अपने यंहा काम करने वाले लोगो पर करोड़ो रूपये इसी बात के लिये खर्च करते है ताकि वो चैनल को लोगो के बीच लोकप्रिय बनाये रखे और इस मामले मे अब कई कंपनिया रिसर्च कर रही है । पश्चिमी देशो मे हो चुके कई प्रयोग अभी हमारे देश मे होने बाकी है ब्रिटिश शो बिग ब्रदर की तर्ज पर देसी रियेलिटी शो बिग बास शुरू होने के बाद अब अगला पड़ाव अगले दशक मे देखने को जरूर मिलेगा। आज का युवा अब नई तरह के प्रयोग करने मे किसी से पीछे नही रहना चाहता। ग्लोबलाइजेशन, इंटरनैट और कम होती काल दरो ने दूरिया कम की है और हमे वो सब सिखाया है जिनके लिये हमने अभी तक अपने दिमाग पर ताले लगा रखे थे। टी वी कल्चर मे आये बदलाव के लिये इंटरनैट का भी बड़ा योगदान है एपल टीवी इसी का सबसे बड़ा सबूत है । आज यू ट्यूब जैसी वैबसाइट्स पर विदेशो मे दिखाये जाने वाले कई नये शो उपलब्ध है और टीवी अब मनोरंजन तक ही सीमित न रहकर हमारे लाइफस्टाइल मे शामिल हो गया है। हमारे कपड़े, जूते, लुक, हेयर कट और हमारे घर मे इस्तेमाल होने वाले हर प्रोडक्ट के फैसले अब टी वी देखने के बाद ही किये जाते है। न सिर्फ हमारी जिंदगी बल्कि दुनिया की इकानमी को चलाने का भार अब टी वी के कंधो पर ही है। किस शेयर के भाव चढ रहे है कहां कब कितना इनवेस्ट करना है से लेकर मौसम और यात्रा संबधी सारी जानकारियो के लिये अब हम टी वी का ही मुंह ताकते है। हमारी हर सुबह, शाम और रात का साथी बन चुका है टी वी । कुछ लोग मजाक मे ये भी कहते है कि बिन बीवी तो कट सकती है पर बिन टीवी तो नामुमकिन है।

टी वी के बारे मे इतना जान लेने के बाद ये बताने की जरूरत नही कि जैसे टी वी आज हमारे दिल मे घर कर चुका है उसी तरह आने वाला दशक इस घर को और भी मजबूत बनाने वाला है। आने वाले दशक मे हमारे घर के अंदर टी वी के बदलते चेहरे को देखना और भी रोचक अनुभव होगा।

(ये रचना दिल्ली प्रेस मे पहले ही प्रकाशित हो चुकी है देखे गृहशोभा)

नये दशक का सिनेमा

आमिर खान के भांजे इमरान खान को बालीवुड मे आये अभी तीन साल भी ठीक से पूरे नही हुए कि उनका एक चौकाने वाला बयान सामने आ गया है उनका कहना है कि वो अब लव स्टोरी टाइप की फिल्मे नही करना चाहते। क्या आज से 10 साल पहले बालीवुड मे आने वाला कोई भी नया हीरो इस तरह का बयान दे सकता था? बिल्कुल भी नही क्योकि हमारे दिलो दिमाग मे बिना लव स्टोरी तो किसी हीरो की कल्पना ही नही हो सकती थी। लेकिन अब ये मुमकिन होता दिख रहा है। असल में इमरान का ये बयान उस दौर की तरफ एक इशारा है जब सिनेमाघरो मे लव स्टोरी वाली फिल्मे नही दिखाई जायेगी। आने वाले दशक मे अगर आप फिल्मो मे लव स्टोरी ढूंढने जाये तो हो सकता है निराश ही लौटे। इसका सबसे बड़ा सबूत है हाल ही में दबंग जैसी एक्शन फिल्म को मिली बड़ी सफलता। गोलमाल और आल द बैस्ट जैसी कामेडी फिल्मो को मिली कामयाबी। थ्री इडियेट्स, गजनी और तारे जमीन पर जैसी फिल्मो के रिकार्ड तोड़ बाक्स आफिस कलेक्शन । इन दिनो अगर लव स्टोरी बनती भी है तो लव आजकल जैसी जंहा शुरूआत ही ब्रेकअप पर दी जाने वाली पार्टी से हो रही है। आज फिल्मो मे प्यार का इस्तेमाल कुर्बान जैसी फिल्म के प्लाट को बुनने के लिये किया जाता है जंहा प्यार एक जरिया है काम करवाने का। समाज मे बदलती सोच फिल्मो के विषयो पर पूरी तरह हावी हो रही है। आज का दर्शक एक दूजे के लिये, कयामत से कयामत तक और दिल वाले दुल्हनिया ले जायेगे जैसी फिल्मो पर अपना वक्त और पैसा बर्बाद करके ओल्ड फैशन सिनेमा नही देखना चाहता क्योकि वो जानता है कि दुनिया अब पहले जैसी नही रही है सब बदल रहा है और अगर बदलते वक्त के साथ अपने मनोरंजन का स्तर भी नही बदला तो वो बहुत पीछे रह जायेगा।

आज एनिमेशन मे तरह तरह के प्रयोग हो रहे है जैसे अजय देवगन की फिल्म टूनपुर का सुपर हीरो- असल मे ये नयी तरह का सिनेमा है जो अगले दशक मे हमारे मल्टीप्लेक्सेस मे दिखाई देगा। शाहरुख खान की फिल्म रा-वन मे जिस तरह का स्टंट बर्लिन मे शूट किया गया वो वाकई हैरान कर देने वाला है जिसमे शाहरुख खान खुद 300 फुट की ऊंचाई से छलांग लगाते दिखने वाले है। दर्शक पहले से ज्यादा समझदार हो चुके है और फिल्मकार अच्छी तरह से जानते है कि दर्शको की जेब से पैसे निकलवाना अब कोई बच्चो का खेल नही है। अगर फिल्म को हिट करवाना है तो वाकई कुछ ऐसा करना होगा जो दर्शको को झकझोर दे। उन्हे कुछ ऐसा देना होगा जो उनके अंदर छिपे दर्द या इमोशन को बाहर निकाल दे। जैसा कि दो साल पहले आई फिल्म ए वैडनैस डे ने किया था। फिल्म मे आतंकवाद के खिलाफ छिपे लोगो के गुस्से को इस तरह से उजागर किया कि दर्शको का दिल भी हल्का हुआ और मजेदार मनोरंजन भी हो गया। करन जौहर की फिल्म कुछ कुछ होता है नब्बे के दशक मे आई थी और अब इस फिल्म का एनीमेटेड वर्जन तैयार किया जा रहा है जिसका नाम है कुची कुची होता है। ये एक नयी तरह की प्रयोग होगा जो अगले दशक मे दिखाई देगा।

एक लड़के एक लड़की की प्रेम कहानी पर फिल्म बनाना अब घिसी पिटी बात हो चुकी है जिसे नयी पीढी के लोग देखना नही चाहते। अब डेटिंग का जमाना है एक रिश्ता टूटने पर कोई आंसू नही बहाता फास्ट फूड के जमाने मे लोगो को कुछ नया अलग और जल्दी बदलने वाला चाहिये। हालीवुड मे बनने वाली अवतार जैसी फिल्मे आज फिल्म तकनीक का नया मापदंड पेश कर रही है जिसके आगे पुरानी तकनीक बोझिल लगता है। शाहरुख खान अपनी एक फिल्म मे एक खास तरीके के शाट को 32 कैमरो से शूट करने वाले है जो कि बालीवुड मे पहली बार है। आज बालीवुड फिल्मे तकनीक के मामले मे हालीवुड से आगे निकलने की फिराक मे है। हिन्दी सिनेमा का बाजार ग्लोबल हो चुका है , आज न्यूजीलैंड से लेकर कनाडा और आस्ट्रेलिया से लेकर कोरिया तक सारे देशो मे हिन्दी सिनेमा के लिये फैस्टिवल्स आयोजित हो रहे है इसलिये नयेपन और तकनीक के मामले मे कोई भी समझौता करने के लिये तैयार नही है। नये दशक मे इन्ही सब पहलुओ को ध्यान मे रखकर फिल्मे बनेगी क्योकि आज फिल्मकार जान चुके है कि उनके दर्शक नयी पीढी के वो लोग है जो हर पल दुनिया के अलग अलग कोनो मे कुछ न कुछ नया सीख रहे है और उन्हे अगर मनोरंजन देना है तो खुद को अपडेट रखना होगा। कभी फिल्मो को समाज का आइना कहा जाता था क्योकि फिल्मे समाज मे परिवर्तन लाती थी लेकिन आज स्थिति उलट गई है बदलते समाज के साथ फिल्मो को अपना तालमेल बैठाना पड़ रहा है।

(ये रचना दिल्ली प्रेस मे जनवरी 2011 के अंक में प्रकाशित हो चुकी है, देखे गृहशोभा जनवरी 2011)