दबंग सलमान खान के फैन्स के लिये एंटरटेनमेंट का फुल डोज है सौतेले भाईयो के बीच बचपन के झगड़े की उसी घिसी पिटी कहानी को अभिनव सिंह कश्यप ने अपने स्टाइल मे पेश किया है एवरेज एक्टिग के बावजूद फिल्म के दमदार डायलाग्स और कमाल के एक्शन सीक्वेंस की वजह से फिल्म दर्शको का मनोरंजन करने मे कामयाब रहती है। फिल्म के डायलाग्स काफी मजेदार है खास कर स्माल टाउन्स मे रहने वाले लोगो के लिये ये किसी तोहफे से कम नही है। सलमान फैन्स को ये सलमान की पिछली फिल्म वांटेड की याद दिला सकती है। सलमान की एंट्री फिल्म मे शानदार तरीके से होती है। सोनाक्षी सिन्हा को इस फिल्म मे ढूढना पड़ता है क्योकि उनके कोई खास डायलाग्स भी नही है—उन्हे शायद गानो के लिये ही साइन किया गया है। अरबाज खान की एक्टिग एवरेज है- छोटे शहरो के कल्चर को बड़ी अच्छी तरह से दिखाया गया है सलमान के पापा के रोल मे विनोद खन्ना और मम्मी के रोल मे डिंपल कपाड़िया ज्यादा असरदार नही है—फिल्म के फाइट सीन्स लोगो को बांध कर रखते है इस फिल्म मे सलमान ने जिस तरह से एक्शन किया है वैसा पहले कभी नही देखा गया—सोनू सूद गांव के विलेन के रोल मे काफी जंच रहे है लेकिन अनुपम खेर और ओम पुरी को बस सिर्फ नाम के लिये ही फिल्म मे रखा गया है।
फिल्म का आइटम सांग मुन्नी बदनाम भी लोगो को नाचने पर मजबूर कर देगा- फिल्म की सिनेमैटोग्राफी शानदार है फिल्म की एडिटिग और क्रिस्प हो सकती थी जिसे ढीला छोड दिया गया है कुछ डबल मीनिंग डायलाग्स होने की वजह से इस फिल्म को यू ए सर्टिफिकेट दिया गया है। सलमान खान अपने जिस स्टाइल के लिये मशहूर है वो आपको इस फिल्म मे देखने को मिलेगा—कुल मिलाकर ये एक फुल आन मस्ती वाली टिपिकल सलमान खान टाइप मसाला फिल्म है जिसे 5 में से 3 स्टार्स दिये जा सकते है।
वैसे तो फुर्सत मुश्किल से मिलती है पर इन दिनो तो फुर्सत की कोई कमी नहीं इसलिये सारी कसर निकाली जा रही है...
Friday, 10 September 2010
Thursday, 10 June 2010
राजनीति को तीन स्टार्स
प्रकाश झा की राजनीति मे माडर्न महाभारत की सारी क्वालिटीज है...एक मजबूत स्क्रिप्ट....एंटरटेनमेंट के लिये अलग अलग तरह के किरदार और एक के बाद एक ऐसे सीक्वेंस जो आडियेंस को बांधे रखते है...
फिल्म की कहानी रनबीर कपूर और उनकी फैमिली के इर्द गिर्द घूमती है रनबीर का किरदार एक जानी मानी पालिटिकल फैमिली से ताल्लुक रखता है लेकिन उसे पालिटिक्स मे कोई दिलचस्पी नही है वो अमेरिका मे पढाई कर रहा है कुछ दिनो के लिये इंडिया आया है लेकिन अचानक कुछ ऐसा होता है कि उसे अपने भाई को पालिटिक्स मे सपोर्ट करने के लिये मजबूर होना पड़ता है वो इंडिया मे ही रूक जाता है और एक के बाद एक ऐसे सीक्वेंस पर्दे पर आते है जो फिल्म को और इंटरेस्टिग बना देते है...फिल्म मे रनबीर के दो लव ट्रैक है एक कैटरिना के साथ जो वन साइडेड है और दूसरा अमेरिकन एक्ट्रैस सारा के साथ जो टू साइडेड है..कैट और अर्जुन के बीच रिश्तो के उतार चढाव को आडियेंस काफी इंजाय करेगी.... मनोज वाजपेयी के कुछ सीन्स बहुत इम्प्रैसिव है...नाना पाटेकर अपने रोल में खूब जंचे है...फिल्म की कास्टिग और डायलाग्स ही फिल्म की जान है...
फिल्म मे पालिटीशियन्स की लैंगवैज उनके मैनेरिज्मस उनकी डेली लाइफ और उनकी लाइफ के उतार चढाव को अच्छी तरह पिक्चराइज किया गया है...फिल्म दिखाई गई ज्यादातर घटनाए वही है जिन्हे हम अक्सर न्यूज पेपर्स मे पढते है। दुर्योधन जैसे रोल मे मनोज वाजपेयी अपनी पहचान छोड जाते है साथ ही अर्जुन राम पाल को इस फिल्म का सरप्राइज पैकेज माना जा सकता है क्योकि अर्जुन को इतने दमदार तरीके से डायलाग बोलते इससे पहले कभी देखा नही गया...कैटरिना के भी कुछ डायलाग्स शुद्द हिन्दी में है...इस फिल्म के कुछ हिस्सो पर सेंसर ने कैंची चलाई है और फिल्म देखते वक्त इसका एहसास हो जाता है...
अगर आप देश के किसी भी कोने मे रहते है और पालिटीशियन्स की लाइफ को करीब से देखने मे इन्टरेस्टेड है तो ये फिल्म आप ही के लिये है...अगर आप फिल्म को गांधी परिवार से कंपेयर न करके महाभारत से कंपेयर करके देखेगे तो ज्यादा मजा आयेगा...फिल्म मे गांधी फैमिली से मिलता जुलता ज्यादा कुछ नही है....
फिल्म मे कुछ जगहो पर महाभारत टच बोरिंग भी लगता है जैसे वो डायलाग्स जो माडर्न कुंती और माडर्न कर्ण बने अजय देवगन के बीच है...इतने ड्रामाटिक है कि लोगो को हंसी आ जाती है...फिल्म मे म्यूजिक ना के बराबर ही है...कुल मिलाकर ये एक पैसा वसूल वन टाइम वाच फिल्म है जो पाच मे से तीन स्टार्स की हकदार है।
फिल्म की कहानी रनबीर कपूर और उनकी फैमिली के इर्द गिर्द घूमती है रनबीर का किरदार एक जानी मानी पालिटिकल फैमिली से ताल्लुक रखता है लेकिन उसे पालिटिक्स मे कोई दिलचस्पी नही है वो अमेरिका मे पढाई कर रहा है कुछ दिनो के लिये इंडिया आया है लेकिन अचानक कुछ ऐसा होता है कि उसे अपने भाई को पालिटिक्स मे सपोर्ट करने के लिये मजबूर होना पड़ता है वो इंडिया मे ही रूक जाता है और एक के बाद एक ऐसे सीक्वेंस पर्दे पर आते है जो फिल्म को और इंटरेस्टिग बना देते है...फिल्म मे रनबीर के दो लव ट्रैक है एक कैटरिना के साथ जो वन साइडेड है और दूसरा अमेरिकन एक्ट्रैस सारा के साथ जो टू साइडेड है..कैट और अर्जुन के बीच रिश्तो के उतार चढाव को आडियेंस काफी इंजाय करेगी.... मनोज वाजपेयी के कुछ सीन्स बहुत इम्प्रैसिव है...नाना पाटेकर अपने रोल में खूब जंचे है...फिल्म की कास्टिग और डायलाग्स ही फिल्म की जान है...
फिल्म मे पालिटीशियन्स की लैंगवैज उनके मैनेरिज्मस उनकी डेली लाइफ और उनकी लाइफ के उतार चढाव को अच्छी तरह पिक्चराइज किया गया है...फिल्म दिखाई गई ज्यादातर घटनाए वही है जिन्हे हम अक्सर न्यूज पेपर्स मे पढते है। दुर्योधन जैसे रोल मे मनोज वाजपेयी अपनी पहचान छोड जाते है साथ ही अर्जुन राम पाल को इस फिल्म का सरप्राइज पैकेज माना जा सकता है क्योकि अर्जुन को इतने दमदार तरीके से डायलाग बोलते इससे पहले कभी देखा नही गया...कैटरिना के भी कुछ डायलाग्स शुद्द हिन्दी में है...इस फिल्म के कुछ हिस्सो पर सेंसर ने कैंची चलाई है और फिल्म देखते वक्त इसका एहसास हो जाता है...
अगर आप देश के किसी भी कोने मे रहते है और पालिटीशियन्स की लाइफ को करीब से देखने मे इन्टरेस्टेड है तो ये फिल्म आप ही के लिये है...अगर आप फिल्म को गांधी परिवार से कंपेयर न करके महाभारत से कंपेयर करके देखेगे तो ज्यादा मजा आयेगा...फिल्म मे गांधी फैमिली से मिलता जुलता ज्यादा कुछ नही है....
फिल्म मे कुछ जगहो पर महाभारत टच बोरिंग भी लगता है जैसे वो डायलाग्स जो माडर्न कुंती और माडर्न कर्ण बने अजय देवगन के बीच है...इतने ड्रामाटिक है कि लोगो को हंसी आ जाती है...फिल्म मे म्यूजिक ना के बराबर ही है...कुल मिलाकर ये एक पैसा वसूल वन टाइम वाच फिल्म है जो पाच मे से तीन स्टार्स की हकदार है।
Monday, 1 February 2010
रहमान तुझे सलाम!!
फरवरी के महीने की इससे अच्छी शुरूआत हिन्दुतान के लिये और क्या हो सकती थी कि जिस अलसाई सुबह आप अपनी रजाई मे दुबके ठंड मना रहे थे उसी वक्त संगीत का जादूगर ए आर रहमान आपको अपना सिर ऊंचा करके चलने की एक और वजह दे रहा था..ए आर रहमान ने १ फरवरी की सुबह एक और इतिहास अपने नाम कर लिया...इतिहास संगीत के नोबल पुरस्कार माने जाने वाले ग्रैमी अवार्ड्स में पहली बार नामिनेशन के साथ ही एक नही बल्कि दो दो ग्रैमी अपने नाम करने का, ये कोई रोजाना होने वाली घटना नही थी कि हिन्दुस्तानी अपने देश को इस तरह की पहचान दिलाये।
रोजा से लेकर स्लमडाग मिलियेनेर तक का सफर करने वाले रहमान ने वाकई अबतक कई बार इस बात को साबित किया है कि अगर कोई क्रियेटिव काम ओरिजनैलिटी और ईमानदारी के साथ किया जाये तो दुनिया उसे सलाम करती है।
मेरा मानना है कि ए आर रहमान की कामयाबी का राज यही है कि वो संगीत को भगवान की पूजा की तरह शुद्द मन से तैयार करते है और संगीत बनाते वक्त उनके मन के भाव बिल्कुल निस्वार्थ होते है और इसी बात का नतीजा है कि उनके हर काम के आगे लोग फिदा हो जाते है।
अगर ऐसा न होता तो बालीवुड के बाकी के कॅापी कैट्स को भी इतने ही सम्मान मिल जाते लेकिन नही मिलते क्योकि वो अपने काम को पूरी इमानदारी के साथ नही करते। मन की खोट काम मे भी खोट पैदा कर देती है।
बहरहाल हम हिन्दुस्तानी खुश है क्योकि हमे किसी दूसरे हिन्दुस्तानी ने एक बार फिर निस्वार्थ भाव से खुश होने का मौका दिया हैष
शुक्रिया रहमान।
रोजा से लेकर स्लमडाग मिलियेनेर तक का सफर करने वाले रहमान ने वाकई अबतक कई बार इस बात को साबित किया है कि अगर कोई क्रियेटिव काम ओरिजनैलिटी और ईमानदारी के साथ किया जाये तो दुनिया उसे सलाम करती है।
मेरा मानना है कि ए आर रहमान की कामयाबी का राज यही है कि वो संगीत को भगवान की पूजा की तरह शुद्द मन से तैयार करते है और संगीत बनाते वक्त उनके मन के भाव बिल्कुल निस्वार्थ होते है और इसी बात का नतीजा है कि उनके हर काम के आगे लोग फिदा हो जाते है।
अगर ऐसा न होता तो बालीवुड के बाकी के कॅापी कैट्स को भी इतने ही सम्मान मिल जाते लेकिन नही मिलते क्योकि वो अपने काम को पूरी इमानदारी के साथ नही करते। मन की खोट काम मे भी खोट पैदा कर देती है।
बहरहाल हम हिन्दुस्तानी खुश है क्योकि हमे किसी दूसरे हिन्दुस्तानी ने एक बार फिर निस्वार्थ भाव से खुश होने का मौका दिया हैष
शुक्रिया रहमान।
Sunday, 31 January 2010
बचा लो टाइगर
हम जब न होगे तो रो रो के दुनिया ढूंढेगी मेरे निशान...
हमारे नेशनल एनिमल टाइगर पर ये लाइने बिल्कुल सटीक बैठती है जो सिर्फ अब १ हजार ४ सौ ग्यारह ही बचे है अगर वक्त रहते इस नीचे जाते काउंट डाउन को कंट्रोल नही किया गया तो हालात बद से बदतर हो सकते है आज देश के सबसे नामचीन चेहरे हम सब से अपील कर रहे है कि हमसे जो हो सके हमे करना होगा कल नही आज ही क्योकि कल तो बहुत देर हो जायेगी..
ग्लोबल वार्मिग के खतरे से अभी हमने कुछ सीखना समझना शुरू किया था कि ये नया खतरा अब अचानक सामने आ गया है जरा सोचो जिन जंगली जानवरो को वक्त रहते ये टाइगर्स खा जाते है वो टाइगर ही नही रहे तो वही लोमडिया, भेडिये, लकड़बग्घे और बारहसिंहें अगर हमारे आपके गांवो मे घुसकर हमारे ही बच्चो को खाने लगे तो क्या करोगे...क्या होगा उस पर्यावरण संतुलन का जिसे बरसो से हम सबने संभाला है हमारे जंगलो से पहले पेड़ गायब हुए और अब बारी टाइगर्स की है...
समस्या गंभीर है जितनी देर मे आप ये ब्लाग पढ रहे है किसी जंगल में एक बाघ कम हो गया होगा और हमे ये कसम खानी है कि अब आज से अभी से ये फिर से कभी नही होगा..हमे अपने नेशनल एनिमल को बचाना है...और ये हम सबकी जिम्मेदारी है।
Friday, 29 January 2010
जीना सीखना होगा
दोस्तो क्या आपने आमिर खान की फिल्म थ्री ईडियेट्स देख ली है अगर नही तो जरूर देखिये इसी संडे थोड़ी सी फुर्सत निकाल कर क्योकि कुछ काम बिना फायदा देखे दिल को खुश करने के लिए भी करने चाहिये। इस फिल्म को देखने के बाद शायद ही कोई होगा जिसका जिंदगी को रोजमर्रा की तरह देखने का नजरिया ना बदले..वाकई ये फिल्म आपको सोचने के िलये मजबूर कर
देगी कि रोजाना जो काम आप ये सोचकर करते है कि ये आपका बहुत जरूरी काम है दरअसल वो ही काम कई बार एक ऐसा फालतू काम होता है जो आपको
आपके असल मकसद से इतनी दूर ले जाता है कि आप यही भूल जाते है कि आपकी असली पहचान क्या है।
देगी कि रोजाना जो काम आप ये सोचकर करते है कि ये आपका बहुत जरूरी काम है दरअसल वो ही काम कई बार एक ऐसा फालतू काम होता है जो आपको
आपके असल मकसद से इतनी दूर ले जाता है कि आप यही भूल जाते है कि आपकी असली पहचान क्या है।
पढाई इसलिये करनी है क्योकि समाज में पढने के बाद ही अच्छी नौकरी मिलेगी, अच्छी नौकरी होगी तभी अच्छी शादी होगी फिर बच्चे होंगे फिर उन्हे भी अच्छी तालीम और सुविधाये दिलाने के लिए खूब मेहनत करके नौकरी मे तरक्की पानी होगी जिससे कि और ज्यादा पैसा आये आम तौर पर लोगो की सोच यही होती है लेकिन मेरे भाई जरा सोचो कि क्या वाकई आप अपने स्टेटस सिंबल को बनाये रखने और अपने बच्चो को पैदा करके उनको ऊची तालीम दिलाने के लिए ही पैदा हुए हो तो फिर आपमे और आपके पड़ोसी मे क्या फर्क है। बस इतना ही कि वो डाक्टरी करके यही काम करता है और आप इसी काम को अंजाम देने के लिए इंजीनियर बनकर दिन भर सिर खपाते है।
क्या वाकई यही जिंदंगी है...क्या ऐसा नही हो सकता कि कुछ काम आप ये बिना सोचे करे कि इसको करने से आपको कितना पैसा मिलेगा...मसलन मेरे लिए लिखना शौक है भले पैसा न मिले पर सुकून मिलता है उसी तरह हो सकता है आपको ये सुकून पतंग उड़ाने..मछली पकड़ने...साइकिल चलाने या फिर स्विमिंग और पेंटिग करने मे आता हो लेकिन आप उसे बेकार का या फिर खाली वक्त का काम समझ कर जिंदगी भर टालते रहते है और जब फुर्सत मिलती है तो आपके हाथ पैर या तो उस काम (शौक) को करने के लायक नही रहते या फिर आप भूल ही जाते है कि आपका वो शौक आखिर था क्या...
मतलब आप उन जरूरी काम को करते करते अपने उस मकसद उस खुशी देने वाले अपने शौक को ऐसे भुला देते है मानो वो आपका नही पड़ोसी का काम है....
पहले तो हम जीना सीखते नही फिर कहते है कि क्या जीना है ये जीना भी कोई जीना है..मेरे भाई इसीलिये आमिर खान के कैरेक्टर रैंचो की मानो जीना सीख लो नही सीखे तो पूरी जिंदगी सजा की तरह काट कर यही बोलोगे कि अब बुढापे में थकान होने लगी है थकान क्यो न हो बेकार का काम करने मे थकान ही होती है शौक का काम करने मे थकान नही होती यकीन न हो तो दो पल के लिए खुद से पूछना कि तुमको क्या पसंद है और फिर वही काम कुछ घंटे करना...मुझे यकीन है आप ८० बरस के भी क्यो न हो आपको थकान नही होगी..
इससे पहले कि जिंदगी छिन जाये हमे तुम्हे और सबको जीना सीखना होगा।
Wednesday, 27 January 2010
अरसे बाद यूं ही..
आज एक अरसे के बाद लिखने का मन हुआ तो लिखने बैठा गया...अच्छा लगा ये सोचकर कि चलो कुछ तो है जिसे मन के मुताबिक कर सकते है...मसलन लिखना, अब देखो ना एक साल तक मन नही हुआ तो नही लिखा और जब मन हुआ तो शूरू कर दिया...वक्त कब पंछी बनकर उड़ जाता है कुछ पता ही नही चलता अभी अचानक ख्याल आया कि करीब एक साल होने को आया मुंबई छोड़कर दिल्ली को अपना ठिकाना बनाये हुए...ये शहर उस शहर से काफी अलग है उतनी दौड़भाग नही है हाँ रात के वक्त मुंबई की याद कभी कभी आती है जब सूनसान सड़के दिखाई देती है क्योकि मुंबई में खाली सड़के सिर्फ शिवसेना बंद या मनसे बंद की दादागिरी के दौरान ही दिखाई देती है..इस साल सर्दी का आनंद लेने के ख्याल से अक्टूबर से ही काफी एक्साइटेड हो रहा था पर अब सर्दी से दिल भरने सा लगा है इधर कुछ दिन दिल्ली से बाहर था तो लोगो ने बताया कि काफी कोहरा पड़ रहा था लेकिन अब तो सर्दी की जाती हुई बहार है।
ट्विटर पर अपने विचारो को लिखना अच्छा लगता है..नया ट्रैंड है इसलिए बालीवुड के सितारे भी इस पर खुल कर अपने विचार लिखते और पढते है...एक ऐसा मंच बन गया है ट्विटर जिसपर आप ये जान सकते है कि आपके चहेते सितारे और दुनिया की जानी मानी हस्तियो की सोच क्या है...वाकई पूरी दुनिया को मुठ्ठी में समेट दिया है ट्विटर जैसी सोशल नैटवर्किग या यू कहे कि ब्लाग साइट ने...लेकिन अच्छा है कही तो आप चंद शब्दो मे अपनी भड़ास निकाल सकते है। देश दुनिया की कह सकते है और इस दुनिया की ही क्यो उस दुनिया की भी कह सकते है...
उस दुनिया से याद आया अब तो आप चांद पर भी जमीन खरीद सकते है वाकई जब पहली बार मैने ये सुना तो एक बार फिर से वो बात याद आ गई कि मनुष्य की कल्पना की कोई सीमा नही है...भले चांद पर हर कोई जा न पाये लेकिन दिल बहलाने के लिये चांद का एक टुकड़ा अपने नाम तो कर ही सकता है...वैसे भी हाउसिंग स्कीम्स की ऊंची उठती कीमतो के बाद अब अगर लोग अपने दिल को तसल्ली देने के लिए ही सही अगर चांद पर जमीन खरीदने लगे तो ज्यादा ताज्जुब की बात नही होनी चाहिये वैसे भी किसी भी बड़ी खोज या अविष्कार की शुरूआत तो एक ख्याल से ही होती है तो अब आप भी सोचिये किसी नये ख्याल के बारे मे कौन जाने आपका कौनसा ख्याल किस नये अविष्कार की वजह बन जाये ...
अल्लाह खैर!!!!!!
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पहले कहीं पढा था कि मनुष्य सौन्दर्योपासक (सुंदरता की पूजा करने वाला) प्राणी है मतलब सुन्दरता की पूजा करता है जो भी अच्छा लगे सुन्दर लग...
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बचपन मे मेरे पड़ोसी रहे गुप्ता अंकल कभी शराब नही पीते थे लेकिन होली के दिन ना जाने सुबह से उन्हे क्या हो जाता था वो सुबह से ही भंग चढाने ...
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फरवरी के महीने की इससे अच्छी शुरूआत हिन्दुतान के लिये और क्या हो सकती थी कि जिस अलसाई सुबह आप अपनी रजाई मे दुबके ठंड मना रहे थे उसी वक्त ...